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Tuesday, 12 July 2016




आँगन

 मेरे घर के आँगन मे  चार  छोटे छोटे परिंदे रहते थे //
मै भी उन चार मे से एक परिंदा था
था बस यू  ही नही कहा , उसकी भी अपनी एक कहनी है
जब वो साथ साथ थे तुो उनको पता ही ना था के साथ क्या होता है.

हा मगर दिन मे एक बार अगर साथ मे चहचहा न लेते तब तक सोते ना थे.
वक्त बदलता  मौसम भी बदलता, मग़र आँगन जस का तस वही रहा
अस्समं भी वही है मगर हु परिंदे न जाने कहा गुम्म हो गैय .
 शायद जरूत और फिर एक और जररूरत , उसके बाद की ज़रूरत ने किसी अलग आँगन की और धकेल दिया ------
Arif